Poem For Peace in Hindi: कोई लड़ाई ना बढ़े-कोई युद्ध न हो अब

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International Poetic Recital - For the Day of the Bachelor of Administration, Friendship, and Universal Fraternity on 13 February 2021. The poem was composed and presented at the CLAD Event in 2021. The poem was composed and read to an international audience. The message was translated into English as well, for the global audience.

 

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मैं एक ऐसी कविता लिखूँ

जिसका नाम न हो कोई और

कोई रंग-रंगत-संगत-सार ना हो।

कविता की लिखावट में छिपा

कल और आज का संसार ना हो।

 

 

हो अगर कुछ तो बस बात इतनी सी ही कहे

जो भी रहे-जहाँ भी रहे- सबका होकर रहे।

कोई लड़ाई ना बढ़े-कोई युद्ध न हो अब

हम ख़ुद ही समझ जायें

बेशक बीच हमारे कोई बुद्ध ना हो अब।

 

मेरे कहने से फ़र्क तो नहीं है पड़ता कोई

और ना ही वक्त को बदल सकता मेरा मन

फिर भी - हम सब मुक्त मन से खुला सोचते

हाथ बढ़ाते अमन की ओर, दरवाज़ा खोलते

गिराते कंटीली दीवारों को

और लौटा देते गोला-बारूद

कुछ फूल-पौधे उगाते और फसलें

लहलहाती-खिलखिलाती -

हमारे सोचने भर से कितना कुछ हो जाता।

 

दो देश दो रहकर भी तो एक ही हो सकते

दो घर हों अलग तो भी एक आंगन तो रख सकते

हैं ये सब बातें सवालों जैसी और

जवाब हैं आस पास ही हमारे

फिर भी उलझनों में फंसे

नफरतों में धंसे

हम कहाँ देख पाते हैं विश्व को

अपने परिवार की तरह।

 

झगड़ पड़ते हैं कभी धर्म और

कभी ना समझे किसी झूठे मर्म पर

हम दूरियाँ भी तो बढ़ा रहे

कभी जात पर तो कभी चेहरे के रंग पर

हम ही तो तालियाँ बजा रहे आँखे मूंद

सामने ही चल रहे दकियानूसी हुड़दंग पर।

 

दुनिया की एकता और वैश्विक प्रेम में

कृष्ण की धरा वाले

ये वैदिक मानुष बहुत कुछ कर सकते हैं

ये खाली हो चुके दरिया-ए-मुहब्बत को

बस हाथ थाम सबका-पल में भर सकते हैं।

  

आओ- चलो समझें हम

बेकार के जालों में ना उलझें हम

 

दीवार न बनाएं हम-पुल बनाएं

जिसके नीचे से बहें काफिले

मिलने वालों के।

तो ऊपर से गुजरें

वो के जो इधर-उधर हुए

जिनके जीवन तितर-बितर हुए।

कुछ उधर रह गए और कुछ राह में ढह गये।

देश बंटता तो दिल भी तो टूट जाते हैं

जो रह गए इस-उस पार अब कहाँ मिल पाते हैं।

 

एक हिन्द-पाक की मिसाल से

एक बर्लिन की दीवार से

एक हिरोशिमा

नागासाकी से

एक बस बिलखते उस बच्चे के चेहरे से

जिसका घर ढहा बारूद से..

सीख सकते हैं हम, जो नहीं है करना

 

और जो करना है।

इतनी सी बात समझ लो दुनिया वालो

औरों को मार कर

हमें नहीं मरना है।

About the Author
Author: Parveen Sharma Website: https://linktr.ee/teacherparv
'You Create Yourself' is the belief that drives the EklavyaParv! It is a Life Long Learning Mission with firm belief in the trilogy of Enhance-Empower-Encourage. We share learning contents on Communication Skills, EdTech, Life Skills, Blended & Innovative Learning and Insights about Education. Parveen is an EdTech Evangelist and has been working in the field of Innovation-driven Education for more than a decade. He writes and delivers training on EduSoMedia, E-Learning, OERs, MOOCs, EdTech, ICT, Blended and Flipped Learning, Academic Intervention, Classroom Makeover, Employability Enhancement, EdTech and Teacher-Student Learning. EklavyaParv is the celebration of his belief in the Learning Spirit of Mankind! Currently he is working at Amity University in Tashkent, Uzbekistan.

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